Wednesday, June 4, 2008

जय भोलास्वामी की

कल भोला प्रसाद को उसके माँ बाप ने फिर से जी भर के कोसा! " निकम्मा कही का....काम का न काज का ढाई मन अनाज का ,दिन भर पड़े पड़े चरता रहता है..कब कोई काम करना शुरू करेगा" भोला ने अपने दोनों कानों को आपस में जोड़ते हुए किसी विधि से एक पाइप फिट किया था जिससे ये सारे प्रवचन आसानी से दुसरे कान से बाहर निकलने में सक्षम थे! भोला कल भी पाइप की मदद से प्रवचनों को गतिमान कर रहा था..मगर बात ज्यादा बिगड़ गयी! बाप को भोला की बेशर्मी पर ज्यादा गुस्सा आ गया और लात मारकर घर से बाहर निकाल दिया ,भोला ने अन्दर घुसने की कोशिश की तो दो लातें और टिकायीं ,साथ में चेतावनी भी दी की अब अगर कुछ कमाना शुरू नहीं किया तो घर में न घुसे! भोला ने माँ की ओर बेचारगी से देखा मगर माँ भी इस बार बापू की साइड थी! भोला को गुस्सा आ गया! उसने भी दरवाजे के बाहर से ही बाप को धिक्कारा कि वे एक पिता का फ़र्ज़ निभाने में नाकाम रहे हैं...और उसी पल उसका आत्म सम्मान जाग गया! भोला का आत्मसम्मान के रूप में कुम्भकर्ण ने पुनर्जन्म लिया था वो भी थोड़े और एडवांस वर्ज़न के रूप में! कुछ मिनिटों को ही जागता था !इन्ही कुछ मिनिटों में भोला ने निश्चय किया कि अब वो गाँव में नहीं रहेगा और तभी लौटेगा जब कुछ कमाने लगेगा! भोला चल दिया शहर कि ओर!

भोला शहर पहुंचा!जैसे ही भूख लगी वैसे ही आत्मसम्मान के सोने का वक्त हो गया! भोला का मन किया कि वापस गाँव लौट जाए मगर इतना चलने कि ताकत नहीं थी! कमबख्त आत्मसम्मान गलत टाइम पे जगा...घर से चलते समय कोई सामान भी न रख सका! कोई काम करने की ताकत भी न थी बदन में और न ही आदत थी! एक मंदिर के सामने बैठे बच्चे को भीख मांगते देखा तो चेहरा खिल गया! भोला भी झट से अपना रूमाल निकाल भीख मांगने बैठ गया! आत्मसम्मान खर्राटे भर रहा था! दो घंटे बैठा रहा पर हट्टे कट्टे मुस्टंडे भोला को एक चवन्नी तक नहीं मिली ऊपर से चार बातें और सुनने को मिल गयीं! भोला सोच रहा था" भले ही चार लातें और मार लेते मगर घर से तो न निकालते" ऐसे ही बैठे बैठे शाम हो गयी...तभी एक उचक्का सा दिखने वाला आदमी भोला के पास आया और बोला" भाई..मैं तुझे सुबह से यहाँ बैठे देख रहा हूँ,क्या समस्या है तुझे?"
भोला ने आपबीती कह सुनाई! उचक्का उचक कर भोला के पास आया और कंधे पर हाथ रखकर बोला" मेरे पास एक जबरदस्त आइडिया है...अगर मेरा कहा मानोगे तो पैसों की बारिश में नहाओगे"
भोला ने संशय से उचक्के को देखा और मुंह बिचका कर बोला " तुम्हे पैसों की बारिश में नहाने से फोड़े निकलते हैं क्या? खुद क्यों नहीं नहा लेते?
उचक्का निराश भाव से बोला" मैं तो खुद ही नहाता लेकिन बरसों से चोरी चकारी कर कर के अब साली शकल ही उचक्की सी हो गयी है!मेरे काम के लिए शरीफ दिखने वाला आदमी चाहिए"
भोला भी राज़ी हो गया" बताओ क्या करना है? बस कहीं फसवा मत देना !
उचक्का बस्ती के बीचों बीच एक पीपल के पेड़ के नीचे भोला को ले गया और एक बेढंगा सा पत्थर पेड़ के नीचे रख दिया! भोला को कुछ समझ नहीं आया" ये क्या कर रहे हो"?
बस तुम देखते जाओ,अच्छा ये बताओ कुछ पैसे हैं तुम्हारे पास ?
अगर पैसे होते तो कुछ खा नहीं लेता" भोला चिढ़कर बोला!
ठीक है ठीक है...मैं ही कुछ इंतजाम करता हूँ! उचक्का फर्राटे भरता गया और चंद मिनटों में ही केसरिया रंग और एक लाल कपडा खरीद कर ले आया! भोला हैरत से मुंह फाड़े उसे देख रहा था!उचक्के ने केसरिया रंग से पत्थर को पोत दिया! अब पत्थर भगवान बन गया था! और लाल कपडे को तिकोना काटकर एक डंडे से बांधकर झंडे की तरह पेड़ पर टांग दिया! बचा लाल कपडा भोला को दिया और बोला "चल...अपना कुरता उतार कर ये कपडा लपेट ले! भोला इतना भी भोला नहीं था ,अब तक उसके दिमाग की बत्ती जल चुकी थी! चुपचाप कुरता उतार कर कपडा लपेट लिया! उचक्के ने भोला के माथे पर एक केसरिया तिलक भी लगा दिया! अब भोला पक्का पंडित बन गया था!उचक्के ने भोला को आदेश दिया कि भगवान के पास बैठकर पूजा करना शुरू कर दे! भोला बोला" मुझे तो एक मन्त्र भी नहीं आता, पूजा क्या ख़ाक करूंगा!
वहाँ बैठ कर आँख बंद करके हाथ तो जोड़ सकता है?
हाँ...ये कर लूंगा!
भोला आँख बंद करके चाट पकोड़ी के सपने देखने लगा! बीच बीच में आँख खोलकर देख लेता..कही उचक्का उसका कुरता लेकर तो नहीं भाग गया! आँखें बंद किये किये ऊंघनी सी आ गयी ,तभी उसकी नींद खुली अपने पैरों पर किसी के स्पर्श से!
ये भोला स्वामी हैं...इन्हें स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन दिए और यहाँ अपनी प्रतिष्ठा कराने का आदेश दिया!" उसके कानो में उचक्के की खिरखिरी सी आवाज़ पड़ी! भोला स्वामी...उसकी हंसी छूटने को हुई,पर मौके की नजाकत को देखते हुए कंट्रोल कर गया! लोग उसके पैर छू रहे थे...थोडी देर में ५-६ नारियल, २-३ प्रकार की मिठाई और पचास-साठ रुपये इकट्ठे हो गए! भीड़ छांटते ही भोला ने उचक्के के चरण पकड़ लिए! "अबे..फोकट में नहीं कर रहा हूँ...आधी कमाई लूंगा और कपडे और रंग के पैसे भी काट लूंगा!
सब मंजूर है भाई!"
अगले कुछ दिनों में भोला स्वामी के चर्चे पूरी बस्ती में हो गए! भोला की अज्ञानता पर पर्दा डालने के लिए उचक्के ने भोला को मौनी बाबा के नाम से फेमस कर दिया! भोला को ड्यूटी अवर्स में चुप रहने में बड़ी तकलीफ होती मगर बोलने का खतरा वह मोल नहीं लेना चाहता था...अकेले में खूब अल्ल गल्ल बोलता! सपने में भी बड़बड़ाने लग गया था!

कुछ ही दिनों में भोला स्वामी प्रसिद्ध हो गए और उचक्का उनका असिस्टैंट और मंदिर का मैनेजर बन गया!एक व्यापारी ने मंदिर के आसपास चबूतरा बनवा दिया,दूसरे ने बोर्ड लगवा दिया "इछापूरण हनुमान" ,तीसरे ने एक टेप रिकॉर्डर और हनुमान चालीसा की कैसेट लाकर दे दीं और चौथे ने वहाँ एक दान पेटी रखवा दी!

भोला और उचक्के का व्यापार अच्छा चल निकला....एक बार एक रईस अपनी मनोकामना लेकर दर्शन को आया और भोला की किस्मत अच्छी थी की उस रईस की मनोकामना पूर्ण हो गयी...खुश होकर उसने पक्का मंदिर बनवा दिया, संगमरमर के फर्श वाला! भोला और उचक्के के लिए मंदिर के पीछे ही एक पक्का कमरा बन गया! अब हर सुबह मंदिर में हनुमान चालीसा चलता और मौनी बाबा भोलास्वामी आँख बंद करके भगवान् के सामने बैठ जाते...बीच बीच में आँख खोलकर सुन्दर कन्याओं और चढाये गए प्रसाद को भी देखते रहते!

मंदिर के आसपास फूलवाले, प्रसाद वाले और बाकी मंदिर का सामान बेचने वाले भी ठेला लगा कर बैठ गए! आधी रोड पर मंदिर का कब्जा हो गया ,बाकी की आधी रोड जनता के लिए छोड़ दी गयी! उन्ही दिनों शहर में नया नगर निगम कमिश्नर आया...आते ही अतिक्रमण हटाओ मुहिम चलाई! सबसे पहला टार्गेट हनुमान जी ही बने..जैसे ही भोलास्वामी के पास नोटिस आया ,नोटिस को मंदिर के बाहर दीवार पर चस्पा कर दिया उचक्के ने..भक्तों ने देखा तो बवाल मचाया..समस्त हिन्दू संगठन इकट्ठे हो गए...कमिश्नर के पुतले फूंके गए! मंत्री जी ने देखा तो कमिश्नर को बुलाकर डांट पिलाई और लगे हाथों ट्रांसफर भी कर दिया!

नया कमिश्नर आ गया, मंत्री जी की गुड बुक वाला ! आते ही सबसे पहले हनुमान जी के दर्शन कर भोला स्वामी का आशीर्वाद लिया और मनोकामना की कि यहाँ रहकर तिजोरी फले फूले! सब खुश...जनता, भोला,उचक्का..मंत्री जी और नया कमिश्नर! अतिक्रमण का क्या है....उसके लिए तो गरीबों की बस्तियां और झुग्गियां हैं ही!

भोला का पेट चुप रह रह के अफरा गया था और उसे इतने दिनों में हनुमान चालीसा भी रट गयी थी अब मौन तोड़ने का समय आ गया था ...उसने उचक्के को अपनी व्यथा बताई...भगवान् उचक्के जैसा दोस्त सबको दे! उचक्के ने अगले ही दिन जनता को बता दिया कि हनुमान जी ने स्वप्न में स्वामी जी को मौन समाप्त करने का आदेश दिया है ,बड़े धूमधाम से भोला का मौन समाप्ति उत्सव मनाया गया! मौन टूटते ही भोला ने सबसे पहले अपनी कौए जैसी आवाज़ में हनुमान चालीसा का पाठ किया !

और हाँ चलते चलते एक बात और....अभी पता चला है कि भोला के माता पिता ने उसे माफ़ कर दिया है और भोला के पास रहने आ रहे हैं !भोला ने उन्हें लेने के लिए अपनी कार भेज दी है..

.जय बजरंग बली की..........

Tuesday, May 20, 2008

बेशरम की संटी

आज शाम को थाने में बैठी थी....तभी वहाँ एक चोर को पकड़ कर लाया गया! पेशेवर चोर था और चोरी का काफी सामान भी उसके पास मिला खैर मैं उसे टैकल करने बैठी...वो काहे को कुछ बताने चला !मैंने एक डंडा उठाया और उसके हथेली में मारा लेकिन उसने झट से हट पीछे कर लिया...मेरा वार खाली गया! अचानक मेरी हंसी छूट गयी....उसका हाथ खींचना और मेरे डंडे का वार खाली जाना अचानक मुझे अपने प्राइमरी स्कूल में खींच ले गया!

मैं और मेरी छोटी बहन मल्लिका सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ते थे! स्कूल में सहपाठियों को भैया बहन पुकारा जाता, अध्यापकों को आचार्य जी बुलाते! जिसका अपभ्रंश कर हब सभी अचार जी बुलाते! हमारे स्कूल के ठीक पीछे एक बड़ा सा नाला हुआ करता था और उसके किनारे किनारे फैली बेशरम की झाडियाँ स्कूल की दीवार को ढकती थीं! बेशरम की संटी हमारी सबसे बड़ी दुश्मन थीं और आचार्यजियों के आकर्षण का केन्द्र! हर क्लास में चॉक डसटर के साथ ही एक हरी संटी भी रखी रहती एक आले में! अगर संटी सूख जाए तो मार खाने में थोडा अच्छा लगता था, कम असर होता था पर हरी संटी ऐसी फनफनाती पड़ती कि तबियत भी हरी हो जाती!

ऐसा कोई माई का लाल नहीं था क्लास में जिसने वो संटियाँ नहीं खाई हों! और संटी खाने का लगभग हर रोज़ एक सा तरीका होता! आचार्य जी प्रश्न पूछते खडा करके...हाथ में संटी फन फनाती रहती! उसे लहराते देखके याद कर कराया भूल जाते!
होमवर्क नहीं किया आज भी, चलो हाथ आगे करो"
इस बार छोड़ दो आचार्य जी कल पक्का पूरा सुना दूंगा!" बच्चे रिरियाते से बोलते!
नहीं...हाथ आगे करो जल्दी" आचार्य जी को भी संटी फटकारने में बड़ा मज़ा आता! कई बार तो मुझे लगता कि शायद संटी मारने के लिए ही आचार्य जी ने इस स्कूल में नौकरी की है!
हाथ आगे आता, रुक रुक कर आधा खुलता ,संटी पड़ती इसके पहले ही पीछे अपने आप खिंच जाता!
साँय की आवाज़ गूँज जाती...सब बच्चे समझ जाते ..संटी हवा में पड़ के रह गयी! जब हाथ में पड़ती तो सटाक के आवाज़ आती!सब मुंह छुपा के हँसते! जब संटी पड़ती ,आँखें अपने आप जोर से मिंच जातीं चेहरा थोडा सा दायें या बाएँ घूम जाता! लेकिन फिर भी दिमाग ऐसा सही जजमेंट करता ..जैसे ही संटी हथेली के पास आती हाथ अपने आप झटके से पीछे हो जाता!आचार्य जी उस समय बौखला जाते और अगली संटी पूरा जोर लगा के मारते!
आचार्य जी सही कह रहे हैं...पूरा याद किया था ,जाने कैसे भूल गए!
बेटा...वोही याद कराने के लिए तो संटी पड़ रही है!' आचार्य जी सिर हिला हिला के कहते!
और हद तो तब होजाती जब जिस को संटी पड़नी हो उसी को तोड़ कर लाने के लिए कहा जाता गोया अपनी कब्र अपने ही हाथ से खुदवाई जाए! जिसको पड़ती वो एक संटी खाने के बाद पीछे पैंट से हाथ मलता...जिससे अगली संटी के लिए हथेली तैयार हो जाए! कभी साँय, कभी सटाक...आचार्य जी को पांच संटियाँ मारने के लिए करीब दस बार संटी फटकारनी पड़ती थी! झूठ नहीं बोलेंगे....हमने भी संटी का स्वाद चखा है! तब तो मज़ा नहीं आता था लेकिन अब याद करके बड़ा मज़ा आता है

Wednesday, May 7, 2008

ब्रेकिंग न्यूज़

अभी कुछ दिन पहले टी.वी. पर हर चैनल मे एक ब्रेकिंग न्यूज़ देखी...."प्रीति जिंटा थप्पड़ मामले पर बोलीं" हमें उत्सुकता हुई कि प्रीति जी ऐसा क्या बोलीं कि ब्रेकिंग न्यूज़ बन गयी! १५ मिनिट तक तो विज्ञापनों से बहलाते रहे....बीच बीच मे एक पढा लिखा सा रिपोर्टर आकर दिलासा दे जाता कि अभी कहीं जाइयेगा मत...ब्रेक के बाद खुलासा होगा इस न्यूज़ का...खैर फालतू ही थे सो जमे रहे टी.वी के सामने...अंततः एक लम्बे इंतज़ार के बाद वो घडी भी आ गयी जब प्रीति को बोलते हुए दिखाया गया....ज़रा आप भी ताज़ा कर लें अपनी स्मृति को कि क्या खुलासा हुआ ....प्रीति बोलीं.." मैं कोई कमेंट नहीं करना चाहती हूँ...जो भी फैसला आएगा वो सही ही होगा". अरे ..जब पहाड़ खुदवाया तो कम से कम एक आध चुहिया तो निकाल देते!

मन बुझ गया...इससे तो राजू श्रीवास्तव को ही देख लेते! लेकिन इस खबर ने हमारे अन्दर भारी उत्सुकता पैदा की कि आखिर ये ब्रेकिंग न्यूज़ कैसे बनती हैं, किन भाग्यशाली ख़बरों को इनमे स्थान मिलता है, रिपोर्टरों को क्या मेहनत करनी होती है इन्हें जुगाड़ने के लिए? तो साहब, जहाँ चाह,वहाँ राह! हमने अपने एक मुखबिर को पकडा और उससे कहा कि भाई हमारी उत्सुकता शांत करने का कोई उपाय बतलाओ....ये मुखबिर भी बड़े काम कि चीज़ होते हैं...जाने कहाँ से ऐसी ऐसी खबरें निकालकर लाते हैं कि सारी इंटेलिजेंस फेल है इनके सामने! उसने कुछ इस भाव से हमें देखा कि ...बड़े ऑफिसर बने फिरते हैं, हम खबरें न दें तो एक बदमाश नहीं पकड़ सकते" हमने भी कुछ इसी भाव से उसे उत्तर में देखा कि "भाई..तू सही कह रहा है"

अगले दिन ही वो आया और एक सी.डी. हमारे हाथ में धर दी ,बोला ..बड़ी मुश्किल से एक चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ की मीटिंग की सी.डी. मिली है..इससे आपके प्रश्नों का समाधान हो जायेगा!उसे उचित पुरस्कार देकर हमने विदा किया! जल्दी से सी.डी. लगायी...देखा और अब मन पूरी तरह शांत है! आपको भी मीटिंग का आँखों देखा हाल सुनाये देते हैं..कहीं कोई का मन हमारे जैसा विचलित होता हो तो मन शांत कर ले! चलिए सीधे मीटिंग रूम में चलते हैं-
मीटिंग रूम में ४-५ रिपोर्टर मौजूद हैं...जो दिन भर पसीना बहाकर ब्रेकिंग न्यूज़ इकट्ठी कर के लाये हैं...उनका हेड सामने कुर्सी पर विराजमान है ! उसे ही न्यूज़ चुनने का अति महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है! वह सबसे पूछता है कि कौन क्या खबर लाया है!
पहला रिपोर्टर- ऐसी न्यूज़ लाया हूँ कि आप खुश हो जायेंगे!
हैड- क्या खबर है?
पहला- आज सलमान खान ने लगातार तीन बार छींका! डॉक्टर की भी बाईट लेके आया हूँ ,वो बतायेगा कि तीन बार छींकना किस बीमारी का लक्षण है!
हैड- बहुत बढ़िया, इस पर कैटरीना का बयान मिल जाए तो और अच्छा! चलो और लोग बताओ....
दूसरा-सर...आज ऐश्वर्या राय विदेश से १५ दिन बाद लौटी और अभिषेक और अमिताभ उसे लेने एयरपोर्ट पहुंचे...
हैड- वैरी गुड! क्लोस अप शॉट्स लिए हैं न?
दूसरा- लिए सर लिए, उनके बॉडीगार्ड ने बहुत धकियाया , अभिषेक ने गाली भी बकी लेकिन मैं फिर भी फोटो लेकर आ गया!
हैड- शाबाश... मैं तुम्हारी तरक्की की सिफारिश करूंगा! चलो और लोग बताओ.
तीसरा- सर, मैंने बढ़ती महंगाई के कारण और निदान पर रिपोर्ट तैयार की है! विद्वान् अर्थशास्त्रियों के बयान भी लिए हैं..
हैड- क्या तुम भी..अपना और हमारा दोनों का टाइम खराब करते हो! विद्वानों की बात सुनने का टाइम किसके पास है! अगली बार अच्छी खबर लाना! चलो और लोग बताओ...
चौथा- सर..एक गाँव में तीन सींग वाली बकरी मिली...लोगों ने पूजा पाठ शुरू कर दिया है!
हैड- बहुत बढ़िया, खबर पर लगातार नज़र मनाये रखो! हाँ तो अब आखिरी में तुम और बचे हो..बताओ क्या किया? अरे हाँ याद आया...तुम्हे तो मैंने ट्यूब वैलों पर कैमरा लेकर खडा होने को कहा था न जिससे जैसे ही कोई बच्चा गिरे..सबसे पहले हमारा चैनल कवर करे!
पांचवा- सर, क्या बताऊँ? वहीं गया था , बोरिंग के मुंह पर किसी ने बड़ा पत्थर रख दिया था..वही हटा रहा था इतने में दुसरे चैनल का रिपोर्टर भी वहीं छुपा हुआ था..जाने कहाँ से आया और मुझे उसमे धक्का दे दिया! वो तो भला हो मेरे मोटापे का ,अन्दर नहीं घुस पाया! वहीं अटक गया! बड़ी मुश्किल से बचकर आया हूँ!
हैड- चलो, कोई बात नहीं! तो आज की मीटिंग ख़तम होती है! हमें तीन ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गयी हैं! बाकी लोग और मेहनत करें!

देखिये, अब हमसे ये मत पूछियेगा कि सी.डी. किस चैनल की थी... वो नही बताएँगे! अरे भाई आगे और भी तो खबरें देनी हैं आप लोगों को!

Thursday, May 1, 2008

आत्मा की तेरहवी



आज आत्मा से हमारा हमेशा के लिए पीछा छूट गया! बचपन से ही हमारा हमारी आत्मा के साथ संघर्ष चला आ रहा है! जाने कैसी आत्मा इशू की है भगवान् ने हमारी काया को,हम जो भी काम करें इसे पसंद ही नहीं आता, जब देखो अपनी टांग फंसाती रहती थी! सच कह रहे हैं एक आध दिन इस आत्मा की तो.... !पूरे बचपन की वाट लगा दी इस आत्मा की बच्ची ने !जब कभी जेबखर्च के लिए पिता जी की पैंट से पैसे चुराने की सोचते,इस आत्मा की चोंच चलने लगती! जैसे तैसे कठिन परिश्रम करके पिता जी की जेब हलकी करते,रात होते ही आत्मा के प्रवचन शुरू हो जाते!नन्ही उम्र थी हमारी सो ज्यादा बहस नहीं कर पाते! आत्मा की बातों में आ जाते और पैसे वापस जेब में रख आते! जब भी परीक्षा में नक़ल करने बैठते,कमीनी आत्मा झक सफ़ेद कपडों में सामने आकर खड़ी हो जाती, बगल वाले की कॉपी पर पर हाथ रख लेती! इन आत्मा मैडम ने कई दफा फेल करवाया!

१४-१५ साल की उम्र तक तो ऐसा हुआ कि हम आत्मा के मुकाबले थोडा कमज़ोर पड़ते रहे, लेकिन उसके बाद धीरे धीरे हमारे अन्दर ताकत का संचार हुआ!हमने अपने जैसे आत्मा पीडितों का एक ग्रुप बना लिया था,जिसकी नियमित बैठकें होतीं और आत्मा से निजात पाने के तरीकों पर मंथन किया जाता,कभी कभी गेस्ट फेकलटी को बुलाकर आत्मा की आवाज़ दबाने के तरीकों पर लेक्चर भी करवाया जाता!इसका नतीजा ये निकला कि अब ७०% मामलों में हमारी जीत होती और ३०% मामलों में आत्मा की!

खैर,हम धीरे धीरे बड़े होते गए! जुगाड़ लगाई तो क्लर्क बन गए और ईश्वर का कृपा से क्लर्की भी अच्छी चल निकली! पर ये धूर्त आत्मा को यह भी गवारा नहीं था !घूस ही तो खाते थे,इसके बाप का क्या लेते थे! जैसे ही रात होती तो हमें झिंझोड़ कर जगा देती और प्रवचन शुरू कर देती! हांलाकि अब तक हम मत्थर पड़ने लग गए थे पर रात तो खराब हो ही जाती!एक दिन ये समस्या का भी समाधान हुआ! रोज़ का तरह आत्मा के उपदेश शुरू हुए तभी हमने देखा, ये सफ़ेद पेंट शर्ट वाली आत्मा के सामने बिलकुल वैसी ही भक काले पेंट शर्ट वाली आत्मा हमारे अन्दर से अवतरित हुई और आते ही कुलटा,कमीनी ,मक्कार जैसी कई उच्च कोटी का गालियों से सफ़ेद आत्मा को नवाज़ दिया !अब हमें कुछ कहने का ज़रूरत नहीं थी,दोनों में आपस में मुंहवाद होता रहा !इसके बाद से तो वह वकील्नुमा आत्मा ही हमारी तरफ से बहस करती,हम आराम से सो जाते!सिलसिला चलता रहा,पर हाँ,अब हर बार सफ़ेद आत्मा ही हारती!

हाँ...तो हम आज के झगडे का बात कर रहे थे!वैसे भी रोज़ रोज़ का किटकिट से तंग आ गए थे हम! आज तो उसने हलकान ही करके रख दिया,पीछे ही पड़ गयी हमारे !इतना जोर से चिन्घादी की जीना दूभर हो गया! ऐसा भी क्या कर दिया था हमने छोटी सी बात थी! हुआ यूं की एक ठेले वाला हमसे अपने जवान बेटे का म्रत्यु प्रमाण पत्र लेने आया, हमने तो भैया आदत के मुताबिक ५०० रुपये मांगे! झूठा कहीं का, कहने लगा की पैसे नहीं हैं!उम्र हो गयी ठेला चलाते चलाते,इतना पैसा भी नहीं कमाया होगा क्या?और फिर जब हम किसी का काम बिना पैसे के नहीं करते तो इसका कैसे कर देते,आखिर सिद्धांत भी तो कोई चीज़ है! खैर ठेले वाला तो चला गया रोते कलपते पर ये आत्मा की बच्ची बिफर गयी ! बहुत जलील किया हमें ! सो हमने भी आज अन्तिम फैसला कर डाला ,अपनी काली आत्मा को बुलाकर सुपारी दे डाली!और उसने सफ़ेद आत्मा का गला हमेशा के लिए घोंट दिया!

हमें कोई ग़म नहीं उसकी मौत का !कोई गुनाह तो नहीं किया हमने,आखिर कानून में भी तो आत्मा के मर्डर के लिए कोई धारा नहीं बनी है!रोज़ ही तो लोग खुल्लम खुल्ला आत्मा का क़त्ल कर रहे हैं और हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं!

बहरहाल,अगली ग्यारस को हमारी आत्मा की तेरहवी है! पंडित ने बताया है की १०१ आत्माओं की आहुति देने से मारी आत्मा कभी वापस नहीं आती! सो सभी आत्मा पीडितों से अनुरोध है की अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर अपनी अपनी आत्माओं की आहुति दें और म्रत्युभोज को सफल बनाएं!

Saturday, April 26, 2008

उफ़,ये शिनचैन


कल एक परिचित के घर जाना हुआ! घंटी बजाई,दरवाजा खुलते ही हमारा स्वागत हुआ एक पतली सी गरजती आवाज़ से" वहीं रुक जाओ...पास आई तो अच्छा नहीं होगा" मैंने घबराकर हाथ भी ऊपर कर लिए इस प्रत्याशा में अब हैंड्स अप की आवाज़ आती ही होगी लेकिन शुक्र है इतने पर ही बस हुआ! देखा तो परिचित का ५ साल का बच्चा खिलोने वाली बंदूक हम पर ताने खडा था! चेहरे पर भी ऐसे भाव थे मानो अभी अटैक ही करने वाला है!इतने में उसकी माँ निकल कर आई...हमारी जान में जान आई!"क्या कर रहे हो बिट्टू,नमस्ते करो" माँ की प्रेम पगी आवाज़ आई!
"चुप रहो,अभी तुमको भी मारुंगा" बिट्टू ने माँ को भी हड़काया!

थोडी शांति मिली हमें ,साथ ही खिसियाहट भी कम हुई कि चलो मेहमान ही नहीं घरवाले भी लतियाये जा रहे हैं! माँ ने बड़े शान से बताया" अरे क्या करें...ये बच्चे भी शिनचैन और पॉवर रेंजर देख देख कर बिगड़ रहे हैं' कहने में 'बिगड़ना' शब्द आया लेकिन भाव था कि बहुत स्मार्ट बच्चा है हमारा! बच्चे के लिए चॉकलेट भी लेकर गए थे..पर देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी! उसे छुड़ाना आता था! आहा ,सचमुच स्मार्ट बच्चा था! उसकी माँ चाय लेने चली गयी और हम भी अपने बचपन में खो गए...क्या सडियल बचपन था दुनिया भर के नियम कायदे सिखा दिए गए थे मुझ मासूम को! कोई आये तो नमस्ते करो, कवितायें सुनाओ,पानी पूछो...टी.वी. में भी बड़े प्यारे कार्टून आते थे...मिकी डोनाल्ड टाइप के...चाह के भी मासूमियत छूट ही नहीं पाती थी! चंपक,नंदन,चन्दा मामा पढ़ के बचपन बीता! बदतमीजी की शिक्षा से वंचित ही रह गए!

इन्ही विचारों में खोये थे इतने में बिट्टू फिर से आ गए इस बार उन्होने हमारे मोबाइल पर निशाना साधा! उसकी माँ सामने नहीं थी सो हमने हिम्मत करके आँख दिखा दी, थोडा डरा पर जाते जाते हमें नोंच कर चला गया! हम डरे सहमे से उसकी माँ का इंतज़ार करने लगे! चलो माँ आई चाय नाश्ते के साथ...बिट्टू नहीं आया, हम खुश हुए शायद हमसे डर के चुपचाप जाकर सो गया! मन ही मन अपनी जीत पर प्रसन्न होते हुए चाय का कप थामा,पहली चुस्की ली ही थी कि बिट्टू अपने क्रिकेट के बल्ले के साथ प्रकट हुए...जलती निगाहों से हमें देखा और धाड़ धाड़ हमारी कुटाई शुरू कर दी! २-३ वार तो हम सहन कर गए उसके बाद बर्दाश्त नहीं हुआ.! हमने बिट्टू की माँ की तरफ आस भरी निगाहों से देखा...पर वो मार खा खा के पक्की हो चुकी थी शायद, मुस्कुराती हुई यशोदा मैया सी बैठी रही!

जब आस की आखिरी डोर भी टूट गयी तो हमी ने चेहरे पर नकली मुस्कान लाते हुए कहा "नहीं बेटे, मारते नहीं हैं" " मैं तो मारुंगा,तुमने मोबाइल क्यों नहीं दिया मुझे? बिट्टू ने कारण स्पष्ट किया!
अब तक हमारी पीठ दुखने लगी थी...रहा नहीं गया तो जोर से डांट बैठे और बल्ला छुडा कर अलग रख दिया! हमारी ये गुस्ताखी माँ को नागवार गुजरी, बिट्टू को धमका कर बोली" बेटा, आंटी को बुरा लग रहा है तो उन्हें मत मारो,जितना मारना है हमें मार लो" !इसके बाद माँ ने इस आशा से हमारी ओर देखा कि शायद हम अपना विचार बदल दें और मार खाने को तैयार हो जाएं...पर नहीं साहब हम भी बेशरम बने बैठे रहे ! सही में हमारी पीठ दुःख रही थी!

बिट्टू गुस्से में अभी भी फनफ़ना रहे थे...माँ का मोबाइल उठाया और जोर से दीवार पर दे मारा! मोबाइल की बैटरी ,स्क्रीन सब अलग हो गयी! हमें उस पल बिट्टू को अपना मोबाइल न देने के फैसले पर गर्व महसूस हुआ! खैर...अगले दस मिनिट में हमने चलने की भूमिका बनाईं....माँ ने भी कोई ऐतराज़ नहीं किया! शायद हम बिट्टू से पिट लेते तो वो हमें थोडी देर रुकने का आग्रह करती!

हम उठकर अपने घर चले आये....आकर टी.वी. चलाया! हंगामा चैनल पर शिनचैन ही चल रहा था! एक ८-१० साल का लड़का अपनी माँ से कह रहा था" ओ,बच्चा चुराने वाली बुढ़िया,चुप रहो"... तो ये था शिनचैन....थोडी देर और देखते रहे! उस निहायत बदतमीज बच्चे के सामने बिट्टू तो बहुत शरीफ था! हमें पहली बार बिट्टू पर थोडा प्यार आया! लगा कि बच्चे की गलती नहीं है...जो देखेगा,वही तो सीखेगा!

खैर उन परिचित के यहाँ तो आगे भी जाना पड़ेगा लेकिन अब ध्यान रखेंगे कि पहले फोन कर लेंगे कि बिट्टू तो घर में नहीं हैं.. क्या करें ,बच्चा हमें भी प्यारा है पर उससे मार न खा पायेंगे! सबसे हमारा करबद्ध निवेदन है कोई आओ और इस शिनचैन को वापस उसके देश छोड़ आओ! हमारे तो बिल्लू,पिंकी ही भले हैं!

एक सुखांत प्रेमकथा

एक था प्रेमी 'हितेन्द्र' ! एक थी प्रेमिका 'सुभद्रा' ! सुभद्रा हितेन्द्र का तीसरा और हितेन्द्र सुभद्रा का पहला प्यार था !क्योकी हितेन्द्र २० का और सुभद्रा १६ की थी!दोनों को अपने आप प्यार नहीं हुआ था बल्कि दोनों ने अपनी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से प्यार करना ज़रूरी समझा सो कर लिया!
सुभद्रा ने अपनी क्लास में जूनियर लेकिन प्यार मे सीनियर सहेलियों से सुन रखा था कि प्यार करने से उपहार मिलते हैं,रेस्तौरेंट में जाने को मिलता है और पार्कों की सैर करने को मिलती है सो सुभद्रा प्यार करने को तड़प उठी!रेस्तौरेंट और पार्क तो दुसरे और तीसरे नंबर पर आते थे लेकिन उपहार मिलने की बात से वह खासी प्रफुल्लित थी ! 'पापा ने कभी कुछ नहीं दिलाया,एक बार प्यार हो जाये तो सारे शौक पूरे कर लूंगी' इन्ही विचारों ने सुभद्रा को हितेन्द्र से प्यार करवाया!
उधर हितेन्द्र दो प्रेमिकाओं द्वारा त्याग दिए जाने के बाद खाली खाली महसूस कर रहा था सो बगल में लड़की लेकर चलने की साध ने उसे सुभद्रा से प्रेम करवाया!
दोनों रोज़ मिलने लगे!तीसरे नंबर पर रखे गए पार्क की सैर तो सुभद्रा ने खूब की लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी वह पहले और दूसरे नंबर के फायदे प्राप्त नहीं कर सकी थी! हितेन्द्र ने न तो उसे कोई उपहार दिया था और न ही किसी रेस्तौरेंट में चटाने ले गया था! हितेन्द्र सच्चा प्रेमी था,प्यार को पैसों से नहीं तोलता था!
इधर सुभद्रा रोज़ आस लेकर जाती की आज तो खाली हाथ नहीं लौटेगी किन्तु जैसे एक बेरोजगार व्यक्ति सुबह नौकरी की तलाश में निकलता है और शाम को चप्पल चट्काता निराश भाव से लौटता है इसी प्रकार सुभद्रा भी वापस लौट आती!इसी तरह दो महीने बीत गए!
ऐसा नहीं था की दोनों में प्यार नहीं था ,बहुत प्यार था दोनों में !क्योकि सुभद्रा का मन अब कोर्स की किताबों से ज्यादा फिल्मी पत्रिकाओं में रमता ,खोयी खोयी सी रहती! हितेन्द्र का एक पासपोर्ट साइज़ का खता खताया सा फोटो जिस पर हेड मास्टर की आधी सील लगी थी,रात में चुपचाप बस्ते में से निकालकर निहारती! और पुराने ज़माने से ही पढ़ते सुनते आये हैं की ये सब लक्षण प्रेम होने के हैं सो हम ये कह सकते हैं की सुभद्रा को प्यार हो गया था! उधर हितेन्द्र का भी कमोबेश यही हाल था!

एक दिन पार्क की बेंच पर बैठे बैठे हितेन्द्र ने प्रस्ताव रखा की अन्य प्रेमियों की तरह हमें भी एक दूसरे को प्यार के छोटे नामों से पुकारना चाहिए,सुभद्रा सहमत हुई और अगले दिन नाम छांटकर लाने के वायदे के साथ दोनों ने विदा ली!सुभद्रा ने सहेलियों से मशवरा कर पांच नाम बेटू,हित्तु,जानू,बब्बू और सोनू छांट लिए ,हितेन्द्र को मशवरा करने की ज़रूरत नहीं थी,पिछली प्रेमिकाओं को प्रदान किये गए नाम अब खाली थे सो उसने भी पांच नाम जान,बेबी,पिंकी,सुभी और रानी छाँट लिए! अगले दिन सभी नामों को ओपन किया गया,सुभद्रा को 'सुभी' जमा तो हितेन्द्र ने 'जानू'सिलेक्ट किया!

ये सब तो ठीक था पर अब सुभद्रा का धैर्य जवाब दे चला था तीन महीने हो गए थे पर अभी तक फूलों के अलावा एक चवन्नी का उपहार नसीब नहीं हुआ था! हितेन्द्र....हाँ,वह उपहार देता था न,रोज़ पार्क की बेंच पर बैठकर सुभद्रा की चुटिया में एक फूल लगाता था,जिसे सुभद्रा नकली मुस्कान के साथ स्वीकार करती और पार्क से बाहर निकलते ही नोंच कर फेंक देती! एक दिन उसने निश्चय किया की उपहार पाना उसका जन्मसिध्ध अधिकार है और वो इसे पाकर ही रहेगी!

अगले दिन दृढ निश्चय के साथ सुभद्रा पार्क में पहुंची, बोली 'जानू ,तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?' हितेन्द्र का माथा ठनका,अनुभवी था,समझते देर नहीं लगी कि अभी जेब पर हमला होने वाला है !बात को बदलते हुए बोला 'सुभी.एक बात बताऊँ मुझे तुम कब ज्यादा अच्छी लगती हो?'
'हाँ हाँ ,बताओ" सुभद्रा तारीफ सुनने को बेचैन हुई!
'जब तुम बिना श्रृंगार,बिना गहनों के होती हो एकदम सिम्पल!तुम्हारी सादगी ही तुम्हारी सुन्दरता है बिंदी लिपस्टिक,चूड़ियाँ हार पहनकर लडकियां पूरी चुडैल लगती हैं'हितेन्द्र ने सुभद्रा को निहारते हुए कहा!
सुभद्रा डर गयी! उसे तो सजने संवरने का भारी शौक था पर 'चुडैल' शब्द ने गज़ब का असर किया!हर लड़की कि चाहत होती है कि प्रेमी कि नज़रों में सबसे सुन्दर लगे !सो अगले दिन मन मसोस कर सुभद्रा ने बिंदी,लिपस्टिक सिंगार पेटी में बंद करके रख दिए ,कान के झुमके निकाल दिए!माँ ने कारण पूछा तो बोली 'माँ,मेरे कान पक रहे हैं इन झुमकों से' !माँ ने झट से सूखी लकडी कि डंडियाँ लाकर दी और कहा 'सूना कान अच्छा नहीं लगता,कुछ नहीं पहनेगी तो कान के छेद बंद हो जायेंगे ' माँ का आदेश मान सुभद्रा ने कानमें डंडियाँ धारण कर लीं !

इधर हितेन्द्र अपनी विजय पर प्रसन्ना था!उपहार मांगे जाने के सारे रास्ते उसने बंद कर दिए थे!अगले दिन सुभद्रा बिना मेकअप के कानों में डंडियाँ फसाए मिलने आई,हितेन्द्र को अच्छी नहीं लगी पर प्रत्यक्ष में बोला 'बहुत प्यारी लग रही हो.एकदम मेरी सुभी लग रही हो,अरे ये कान में क्या पहन रखा है बहुत सुन्दर,एकदम वन्कन्या लग रही हो....मेरी शकुंतला' !हितेन्द्र ने हौसला बढाते हुए उसे एक नाम और प्रदान किया ! सुभद्रा को बिलकुल ख़ुशी नहीं हुई !उस दिन आधे घंटे में ही उठकर आ गयी!
अगले दिन फिर बेमन से पार्क में पहुंची! अब रोज़ रोज़ पद यात्रा करने का कोई कारण भी नहीं था!लेकिन हितेन्द्र आया और बोला 'सुभी ,मैंने आज तक तुम्हे कोई उपहार नहीं दिया ,अपनी आँखें बंद करो,मैं आज तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ'
सुभद्रा लहक उठी ,सूने मन में आशा का संचार हुआ ,तुरंत आँखें बंद करके हथेली आगे कर दी!हितेन्द्र ने सूखी लकडी की डंडियों के पांच सेट सुभद्रा कि हथेलियों पर रख दिए!सुभद्रा ने आँखें खोलीं ,उपहार देखते ही आत्मा से गालियों का गुबार उठा जो संकोच वश मुंह तक नहीं आ सका! अन्दर ही अन्दर गुरगुराती घर वापस आ गयी!

अब सुभद्रा बुरी तरह उकता चुकी थी !प्रेम से निजात पाना चाहती थी! उधर हितेन्द्र भी सुभद्रा का मेकअप विहीन चेहरा देख देखकर बोर हो गया था!उसने निश्चय किया कि अगली बार किसी अमीर लड़की से प्रेम करेगा !
एक महीने बाद दोनों उसी पार्क में बैठे थे! सुभद्रा सजी,संवरी महेश के साथ बैठी थी ,हाथ में गिफ्ट पैक किया हुआ कोई उपहार था !उधर दूसरी बेंच पर हितेन्द्र प्रेमलता को फूल भेंट कर रहा था! दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा दिए!

मोहल्लों की प्रेमकथायें

आज शाम को घर के बाहर टहल रही थी तो कॉलोनी की छतों पर घूम घूम कर पढाई करते लड़के लड़कियों को देखा! बड़ा जोर का माहौल बना हुआ था पढाई का !अपने दिन भी याद आ गए साथ ही किताबों की आड़ से एक दुसरे को ताकते देखकर मुस्कराहट भी आ गयी! दरअसल आज भी मोहल्लों में बहुत सारे पहले प्यार छत पर घूम घूम कर पढ़ते समय ही होते हैं!

"मम्मी पढ़ने जा रहे हैं छत पर" शाम के ६ बजते ही सभी घरों के बच्चे सज धज कर छत पर पहुँच जाते हैं! मम्मी भी प्रसन्न "कितनी चिंता है पढाई की,टोकना नहीं पड़ता!लडकियां रोज़ नए फैशन के कपडे पहन कर छत पर जायेंगी...लड़के भी टिप टॉप रहने में कोई कसर नहीं छोडेंगे! हाथ में पानी की बोतल,कभी कभी कांच के गिलास में रूह आफ्ज़ा भी छत पर घूम घूम कर ही पिया जाता है! मज़े की बात ये है की आधे लोग इश्क फरमाते हैं...आधे आशिकों के मज़े लेते हैं!कुल मिलाकर किताबें उसी पेज पर हवा खाकर वापस लौट आती हैं!

अब अँधेरा हो गया, नीचे से मम्मी की आवाज़ आने लगी" चलो,नीचे आओ ,नीचे बैठकर पढो" "हाँ मम्मी, आते हैं,अभी तो दिख रहा है"
और सच भी है,दूसरी छत का सब कुछ दिख रहा होता है गोली मारो किताब में लिखे को..कमबख्त कोर्स की किताब को कौन पूछे जब सामने मोहब्बत की किताब खुली हो मोहब्बत की किताब का यही फायदा है...इसके अक्षर पढ़ने के लिए उजाले का होना नितांत गैर जरूरी है!खैर ज्यादा देर तक तो माँ को भी बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता,आधे घंटे में नीचे उतरना ही पड़ता है! कोई बात नहीं जहाँ चाह,वहाँ राह! अगर प्रेमी प्रेमिका का घर आमने सामने है तो सोने पे सुहागा! गर्मी के दिन हैं तो खिड़की खोलकर पढना तो लाज़मी है भाई...अब इसमें किसी का क्या दोष जो अगला भी खिड़की खोले ही बैठा है! और अगर दोनों में से किसी एक ने पहले खिड़की पर डेरा जमा लिया और दूसरे को आने में १० मिनिट ऊपर हो गए तो ये १० मिनिट तो क़यामत के समझो! जिसने इन दस मिनिटों का लुत्फ़ उठाया है वही समझ सकता है! अगर दोनों में से जिसने इंतज़ार किया है वो अगले को ज़रूर तड़पायेगा ,दूसरी खिड़की खुलते ही शिकायत भरी आँखों से एक बार देखकर मुंह फेर लेगा और किताब में सिर घुसा देगा जैसे मरा जा रहा हो पढ़ने को,किताब को भी पता होता है कि शुद्ध नौटंकी कर रहा है! अब अगला तब तक किताब में घुसे सिर को देखता रहेगा जब तक कि सिर ऊपर उठाकर देख न ले...और जैसे ही एक बार नज़र मिली देर से आने वाला कुछ अजीब सा मुंह बनाता है किसका अर्थ होता है "प्लीज़ माफ़ कर दो,आगे से ऐसा नहीं होगा" एक बार ऐसा मुंह बनाने से बात नहीं बनती,कम से कम ३-४ बार बनाना पड़ता है तब जाकर एक दूसरे अजीब से मुंह बना कर प्रतिक्रिया दी जाती है जिसका अर्थ होता है कि "ठीक है,ठीक है,इस बार माफ़ किया !अगली बार ध्यान रखना! फिर दोनों खुश होकर मुस्कुरा देते हैं!सुबह के ५ बजे तक इसी प्रकार गहन अध्ययन कार्य चलता है!


इसी प्रकार पढाई करते करते अब परीक्षा सर पर आ गयी! अभी तक तो बात करने का कोई बहाना नहीं था मगर अब काम शुरू होता है प्रश्न बैंक, 20 question और गैस पेपरों का ,इनकी अदला बदली से प्रेम का एक नया अध्याय प्रारंभ होता है ! खैर परीक्षा हुई,रिजल्ट आया! माता-पिता हैरान "बच्चे ने रात रात भर जाग कर पढाई की फिर भी नंबर इतना खराब" कॉपी जांचने वाला मुफ्त में गालियाँ खाता है ,शिक्षा व्यवस्था को भी कोसा जाता है! लेकिन बेटे बेटी को कोई गम नहीं! रिजल्ट चाहे जैसा आया हो....प्यार की गाडी तो आगे बढ़ ही जाती है.